2 रोजे की फजीलत
जब रमजान आता हे तो आसमान के दरवाजे खोल दिये जाते है, जहन्नम के दरवाजे बन्द कर दिये जाते है ओर शयातीन जन्जीरो से जकड़ दिये जाते है। (लुलु वर मरजान-65 2, अबु हुरैरा रजि.)
रमजान मे उमरा करने से हज का सवाब मिलता है। (मुस्लिम-225 5-56 इब्ने अब्बास रजि.)
रमज़ान में सवाब की नीयत से रोजा रखने ओर कयाम करने वाले के गुजरे सब गुनाह माफ कर दिये जाते है। (बुखारी-1901, इब्ने माजा-1641 अबु हुरेरा रजि.)
रोज़ा कयामत के दिन रोजेदार की सिफारिश करेगा । (मुसनद अहमद, तबरानी, इबने अम्र बिन आस रजि.)
(क) रोजे का अज्र (बदला) बे हिसाब है।
(ख) रोजेदार की मुंह की बू कयामत के दिन अल्लाह तआला को मुश्क की खुशबू से भी ज्यादा पसंद होगी। (बुखारी-1894 मुस्लिम-1997-98 अबु हुरैरा रजि.)
‘जन्नत में रयान‘ नाम का एक दरवाज़ा है। कयामत के दिन उस दरवाजे से सिर्फ रोजेदार जन्नत में दाखिल होगे। (मुस्लिम, बुखारी-1896, इब्ने माजा-1640, सहल बिन सअद रजि.)
रमजान का पूरा महीना अल्लाह तआला हर रात में लोगों को जहन्नम से आजाद करता है। (इब्ने माजा-1642 अबु हुरेरा रजि.)
अल्लाह तआला हर रोज़ इफ्तार के वक्त लोगों को जहन्नम से आजाद करता है। (इब्ने माजा-1643 जाबिर रजि.)
3. रमज़ान की अहमियत
रमजान के महीने में एक रात ऐसी हे जो हजार महीनों से बेहतर है। जो शख्स इस (कि सआदत हासिल करने) से मेहरूम रहा, वह हर भलाई से मेहरूम रहा। (इब्ने माजा-1644 अनस रजि.)
उस शख्स के लिए हलाकत है जिसने रमजान का महीना पाया ओर अपने गुनाहों की बख्शिश ओर माफी ना पा सका। (मुसतदरक हाकिम-काअब बिन उजरा रजि.)
कोई शख्स अगर बगैर शरई उज्र के रमजान का रोज़ा छोड़ दे या तोड़ दे तो जिन्दगी भर के रोजे भी उसकी भरपाई नहीं कर सकते। (अबु दाऊद-2396 जईफ, तिर्मिज़ी-621, अबु हुरैरा रजि.)
4. चांद देखने के मसाइल
चांद देखे बिना रमजान के रोजे शुरू ना करो ओर चांद देखे बगैर रमजान खत्म ना करो। अगर मतला अब आलूद हो तो महीने के 30 दिन पूरे कर लो। (मुस्लिम 1842, बुखारी 1906, इब्ने माजा-1654 इब्ने उमर रजि.)
एक मुसलमान की गवाही पर रोजे शुरू किये जा सकते है। (अबु दाऊद-2342 इब्ने उमर रजि., इब्ने माजा 165 2 इब्ने अब्बास रजि.)
शव्वाल (ईद) का चांद देखने में दो आदमियों की गवाही होना चाहिये। (अबु दाऊद 2339 रबीअ बिन हिराश रजि.)
रमजान की पहली तारीख के चांद के बजाहिर छोटा या बड़ा दिखने से शक में नहीं पड़ना चाहिये। (मुस्लिम 1859 अबु अल बख़तरी रजि)
नया चांद देखने पर यह दुआ पढ़ना मसनून है “अल्ला हुम्मा अहिल्लहु अलैना बिल्युम्नि वल ईमानि वस्सलामति वल इस्लाम! रब्बि व रब्बु कल्लाह।” यानि ऐ अल्लाह! हम पर यह चांद अम्न, ईमान, सलामती ओर इस्लाम के साथ तुलूअ फरमा। (ऐ चांद मेरा और तेरा रब अल्लाह है।) (तिर्मिजी, मिश्कात-23 1 5 तल्हा बिन उबैदुल्लाह रजि.)
(क) चांद देख कर रोजा शुरू करने और चांद देखकर खत्म करने के लिए उस वक्त हाज़िर इलाके या मुल्क का लिहाज़ रखना चाहिये।
(ख) रमजान में एक मुल्क से दुसरे मुल्क सफर करने पर अगर मुसाफिर के रोजों की तादाद हाजिर इलाके में माहे रमजान के रोजों की तादाद से ज्यादा होती हो तो जाइद दिनों के रोजे छोड़ देना चाहिये या नफिल रोजे की नीयत से रखना चाहिये और अगर तादाद कम बनती हो तो ईद के बाद रोजों की गिनती पूरी करनी चाहिये। (मुस्लिम 1858 अबु दाऊद 2332 तिर्मिजी 596 इब्ने अब्बास रजि.)
अब्र (बादल) की वजह से शव्वाल (ईद) का चांद दिखाई ना दे और रोजा रख लेने के बाद मालूम हो जाये कि चांद नजर आ चुका है तो रोजा खोल देना चाहिये। (अबु दाऊद-233 9 रबिअ बिन हिराश रजि.)
5. रोज़े की नीयत के मसाइल
आमाल के अज्र व सवाब का दारोमदार नीयत पर है। (बुखारी-01 उमर रजि.)
जिसने दिखावे का रोजा रखा उसने शिर्क किया। (मुसनद अहमद-शद्दाद बिन औस रजि.)
जिसने फज़र से पहले फ़र्ज़ रोजे की नीयत ना की उसका रोजा नहीं। (अबु दाऊद-2454 तिर्मिजी-628 हफ़सा बिनते उमर रजि.)
(क) नफली रोजे की नीयत दिन में जवाल से पहले किसी भी वक्त की जा सकती है।
(ख) नफली रोजा किसी भी वक्त और किसी भी वजह से तोड़ा जा सकता है। (मुस्लिम-2004-05 अबु दाऊद-2455 आयशा रजि.)
रोजे की नीयत दिल के इरादे से है। मुरव्वजा अलफाज “व बि सौमि गदिन नवैतु मिन शहरि रमज़ान“ सुन्नते रसूल सल्ल. से साबित नहीं.
6. सहरी व इफ्तारी के मसाइल
सहरी खाओं क्योकि सहरी खाने में बरकत है। (लुलुवल मरजान-665, इबने माजा-1692 अनस रजि.)
हमारे और अहले किताब के रोजे में फर्क सहरी के खाने का है। (अबु दाऊद-2343 नसाई-21 70 अम्र इब्ने आस रजि.)
सहरी देर से खाना और इफ्तार में जल्दी करना अखलाके नबुवत से है। (तबरानी-अबुदर्दा रजि.)
सहरी खाते अगर अजान हो जाये तो खाना फौरन छोड़ देने के बजाय जल्दी-जल्दी खा लेना चाहिये। (अबुदाऊद-2350 अबुहुरैरा रजि.)
रोज़ा इफ्तार करने के लिए सूरज का गुरूब होना शर्त है। (बुखारी-1954 मुस्लिम-1877 अबु दाऊद-2351 उमर रजि.)
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