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नबी करीम ‎ﷺ ‏जब आसमान के गोशे से बदली उठते देखते तो काम ‎( ‏धाम ‎) ‏सब छोड़ देते यहां तक कि नमाज़ में होते तो उसे भी छोड़ देते, ‏और यूं दुआ फ़रमाते: ‏

🌺नबी करीम ﷺ जब आसमान के गोशे से बदली उठते देखते तो काम ( धाम ) सब छोड़ देते यहां तक कि नमाज़ में होते तो उसे भी छोड़ देते, और यूं दुआ फ़रमाते: 

अल्लाहुम्मा इन्नी आउज़ुबिका मिन शर्रीहा
ए अल्लाह! मैं इसके शर से तेरी पनाह मांगता हूँ ...

फिर अगर बारिश होने लगती,तो आप फ़रमाते: 
अल्लाहुम्मा सय्यीबन हनिअन
 ए अल्लाह! इस बारिश को ज़ोरदार और ख़ुशगवार और बाबरकत बना।..

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रोजे के फजाइल part2

जब तक लोग इफ्तार में जल्दी करेंगे उस वक्त तक खैर व भलाई पर रहेंगे। (लुलुवल मर्जान-667 सहल बिन सअद रजि.) ताजा खजूर, छुवारा या पानी से रोजा इफ्तार करना मसनून है। (तिर्मिजी-अबु दाऊद-2356 अनस रजि.) नमक से रोजा इफ्तार करना सुन्नत से साबित नहीं। रोजे के इफ्तार पर यह दुआ पढ़ना साबित है। “जहब्बज़्जमउ वन्तलल्तिल उरूक व सब तल अज्रू इन्शा अल्लाह” यानि “प्यास खत्म हो गई, रगें तर हो गई और रोजे का सवाब इन्शा अल्लाह पक्का हो गया। (अबू दाऊद-2357-इब्ने उमर रजि.) नोट: इफ्तार के वक्त यह दुआ “अल्लाहुम्मा लका सुन्तु (व बिका आमनतु व इलैका तवक्कलत) व अला रिज्किका अफतरतु” (अबुदाऊद-2358) ना पढ़ना बेहतर है। इसलिए के ये अलफाज हदीसे रसूल सल्ल. में ज़्यादती है। और बाकी हदीस भी सनदन जईफ है। जिसने रोजेदार का रोजा इफ्तार करवाया उसे भी उतना ही सवाब मिलेगा जितना सवाब रोजेदार के लिए होगा और रोजेदार के सवाब (अज्र) से कोई चीज़ कम ना होगी। (इब्ने माजा-1746 तिर्मिजी-700 जेद बिन खालिद रजि.) 7. रोजे की रुख्सत (छूट) के मसाइल सफर में रोजा रखना और छोड़ना दोनो जाइज है। (लुलुवल मर्जान-684 आयशा रजि.) नबी सल्ल. के साथ सफर में कुछ सह...